आमलकी एकादशी तिथि का प्रारम्भ 20 मार्च को मध्य रात्रि 12 बजकर 21 मिनट पर
एकादशी तिथि का समापन 21 मार्च को प्रातः 02 बजकर 22 मिनट पर होगा।
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार आमलकी या रंगभरी एकादशी 20 मार्च, बुधवार के दिन मनाई जाएगी।
आमलकी एकादशी व्रत तिथि- 20 मार्च 2024
एकादशी व्रत का पारण का समय- 21 मार्च को दोपहर 1 बजकर 41 मिनट से शाम 4 बजकर 07 मिनट तक।
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। सभी एकादशियों में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया है। आमलकी एकादशी को आंवला एकादशी या आमली ग्यारस भी कहते हैं। इसे रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि आंवले का पेड़ भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन व्रत रखकर जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु जी के साथ आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इससे भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
।।आमलकी एकादशी व्रत कथा।।
प्राचीन समय में वैदिक नामक नगर में चैत्ररथ नामक चंद्रवंशी राजा राज्य करते थे। इस नगर में सभी लोग विष्णु जी के भक्त थे और एकादशी का व्रत किया करते थे। एक बार फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन सभी भक्तजन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और रात्रि जागरण कर रहे थे, तभी वहां एक शिकारी आया। वह भी वहां रुककर भगवान विष्णु की कथा तथा एकादशी का महात्म्य सुनने लगा। इस प्रकार उस शिकारी ने अपनी पूरी रात जागरण करते हुए व्यतीत की। अगले दिन वह घर गया और भोजन करके सो गया। कुछ दिनों बाद ही उनका निधन हो गया। शिकारी के पापों के कारण उसे नरक भोगना पड़ता, लेकिन उसने अनजाने में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इसलिए उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया। एक दिन वसुरथ जंगल में भटक गया और एक पेड़ के नीचे सो गया। उस पर कुछ डाकुओं ने हमला कर दिया, लेकिन उनके अस्त्र-शस्त्र का राजा पर कोई असर नहीं हुआ। जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने पाया कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हुए हैं। उन्हें देखकर राजा समझ गए कि वह उसे मारने आए थे। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन भगवान विष्णु ने तेरी जान बचाई है। तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी की व्रत कथा सुना था और यह उसी का फल है। मान्यता है जो विष्णु भक्त आमलकी एकादशी की पूजा- व्रत करके कथा सुनते हैं,उनके सभी कष्ट भगवान विष्णु स्वयं हर लेते हैं।