जब से सुदंर सिंह का नौकरी से जुड़ा नाता, वह जंगल की ओर नहीं जाता
पहाड़ी कोरबा सुंदर सिंह कुछ माह पहले तक बेरोजगार था। कभी मजदूरी मिल जाने से काम कर लेता था तो कभी कुछ नहीं मिलने से जंगल की ओर निकल पड़ता था। उसके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, इसलिए घर परिवार का खर्च चलाने में उसे अक्सर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राशनकार्ड के जरिए दिए जाने वाले खाद्यान्न से उन्हें भूखे पेट सोने की नौबत तो नहीं आती थी, लेकिन घर की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे का इंतजाम भी नहीं हो पाता था। इसी बीच मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निर्देश पर जिला प्रशासन द्वारा जब जिले के विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग के योग्य बेरोजगार युवकों को नौकरी देने की शुरुआत की गई तो पहाड़ी कोरवा सुंदर सिंह ने भी अपना आवेदन जमा किया। पहाड़ी कोरवा सुंदर के दस्तावेजों की जाँच के पश्चात उसका चयन कर लिया गया। विषम परिस्थितियों में रहकर गरीबी के बीच मजदूरी करने वाला पहाड़ी कोरवा सुंदर का नाता स्कूल से जुड़ गया है। वह भृत्य के रूप में नौकरी कर परिवार की जिम्मेदारी उठा पा रहा है। अब वह अनावश्यक जंगल की ओर नहीं जाता।
कोरबा ब्लॉक के ग्राम कोरई में रहने वाले पहाड़ी कोरवा सुंदर सिंह ने बताया कि उन्होंने बहुत संघर्षों से आठवीं पास किया। इस बीच गरीबी और घर का माहौल अलग होने की वजह से आगे की पढ़ाई भी नहीं कर पाया। वह सुबह होते ही जंगल की ओर निकल जाता और देर शाम को लौटता। कभी-कभी मजदूरी का काम मिल जाने से उसे कुछ रूपए मिल तो जाते थे, लेकिन इससे उसकी गरीबी और आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हो पाती थी। पहाड़ी कोरवा सुंदर सिंह ने बताया कि उनके घर में शुरू से ही अलग माहौल था। परिवार का पूरा समय जंल में ही बीतता था। कुछ समय बाद उनकी भी शादी हो गई। जंगल से निकलकर पहले पढ़ाई फिर मजदूरी करना और घर का खर्च उठाना यह सब बहुत मुश्किल हो गया। उन्होंने बताया कि पिताजी सहित उनके परिवार के अधिकांश सदस्य बहुत गरीब है और उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह आठवीं तक की पढ़ाई कर पायेगा। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निर्देश पर जिला प्रशासन द्वारा हम पहाड़ी कोरवाओं को नौकरी देकर बहुत बड़ा उपकार किया गया है। उन्होंने बताया कि नौकरी लगने से घर-परिवार और समाज में खुशी का है। पहाड़ी कोरवा सुंदर का कहना है कि अब उसकी पूरी दिनचर्या बदल गई है। रूमगरा के शासकीय हाई स्कूल में भले ही उन्हें भृत्य के रूप में मानदेय से नौकरी मिली है लेकिन यहां का माहौल उन्हें बहुत कुछ सीखा रहा है। अन्य बच्चों को देखकर उन्होंने भी निर्णय लिया है कि अपने बच्चों को भी आगे तक पढ़ायेगा। विगत पांच माह से भृत्य के पद पर नौकरी से जुड़े सुंदर सिंह ने वेतन मिलने के बाद अपने ऊपर लदे कर्ज के बोझ को हल्का कर लिया है, वहीं पत्नी और बच्चों के लिए भी कपड़े सहित नए सामान लिए हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में वह अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देगा। सुंदर सिंह की पत्नी निहारों बाई का कहना है कि पति को नौकरी मिलने के बाद घर का माहौल बदल गया है। पहले घर में पैसा नहीं होने से घर का जरूरी सामान नहीं आ पाता था, अब समय पर सामान आने से घर का चूल्हा समय पर जलता है और वे अपनी पसंद का खा सकते हैं, कुछ खरीद सकते हैं। उन्होंने कहा कि पति को नौकरी मिलने पर उन्हें बहुत खुशी महसूस हो रही है। वह कहती है कि नौकरी भले ही उन्हें डीएमएफ से मानदेय पर मिली है लेकिन इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत बन पाएगी।